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Thursday, 21 January 2016

sheetalnath_chalisa

शीतल हैं शीतल वचनचन्दन से अधिकाय 
कल्प वृक्ष सम प्रभु चरणहैं सबको सुखकाय ।।

जय श्री शीतलनाथ गुणाकरमहिमा मंडित करुणासागर 
भाद्दिलपुर के दृढरथ रायभूप प्रजावत्सल कहलाये ।।

रमणी रत्न सुनन्दा रानीगर्भ आये श्री जिनवर ज्ञानी 
द्वादशी माघ बदी को जन्मेहर्ष लहर उठी त्रिभुवन में ।।

उत्सव करते देव अनेकमेरु पर करते अभिषेक 
नाम दिया शिशु जिन को शीतलभीष्म ज्वाल अध् होती शीतल ।।

एक लक्ष पुर्वायु प्रभु कीनब्बे धनुष अवगाहना वपु की 
वर्ण स्वर्ण सम उज्जवलपीतदया धर्मं था उनका मीत ।।

निरासक्त थे विषय भोगो मेंरत रहते थे आत्म योग में 
एक दिन गए भ्रमण को वन मेंकरे प्रकृति दर्शन उपवन में ।।

लगे ओसकण मोती जैसेलुप्त हुए सब सूर्योदय से 
देख ह्रदय में हुआ वैराग्यआत्म राग में छोड़ा राग।।
तप करने का निश्चय करतेब्रह्मर्षि अनुमोदन करते 
विराजे शुक्र प्रभा शिविका मेंगए सहेतुक वन में जिनवर ।।

संध्या समय ली दीक्षा अश्रुणचार ज्ञान धारी हुए तत्क्षण 
दो दिन का व्रत करके इष्टप्रथामाहार हुआ नगर अरिष्ट ।।

दिया आहार पुनर्वसु नृप नेपंचाश्चार्य किये देवों ने 
किया तीन वर्ष तप घोरशीतलता फैली चहु और ।।

कृष्ण चतुर्दशी पौषविख्यताकेवलज्ञानी हुए जगात्ग्यता 
रचना हुई तब समोशरण कीदिव्यदेशना खिरी प्रभु की ।।

आतम हित का मार्ग बतायाशंकित चित्त समाधान कराया 
तीन प्रकार आत्मा जानोबहिरातम अन्तरातम मानो ।।

निश्चय करके निज आतम काचिंतन कर लो परमातम का 
मोह महामद से मोहित जोपरमातम को नहीं माने वो ।।

वे ही भव भव में भटकातेवे ही बहिरातम कहलाते 
पर पदार्थ से ममता तज केपरमातम में श्रद्धा कर के ।।

जो नित आतम ध्यान लगातेवे अंतर आतम कहलाते 
गुण अनंत के धारी हे जोकर्मो के परिहारी है जो ।।

लोक शिखर के वासी है वेपरमातम अविनाशी है वे 
जिनवाणी पर श्रद्धा धर केपार उतारते भविजन भव से ।।

श्री जिन के इक्यासी गणधरएक लक्ष थे पूज्य मुनिवर 
अंत समय में गए सम्म्मेदाचलयोग धार कर हो गए निश्चल ।।

अश्विन शुक्ल अष्टमी आईमुक्तिमहल पहुचे जिनराई 
लक्षण प्रभु का कल्पवृक्ष थात्याग सकल सुख वरा मोक्ष था।।

शीतल चरण शरण में आओकूट विद्युतवर शीश झुकाओ 
शीतल जिन शीतल करेंसबके भव आतप 
अरुणा के मन में बसेहरे सकल संताप।।

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