वीतराग सर्वज्ञ जिन, जिनवाणी को ध्याय ,
लिखने का साहस करूँ, चालीसा सिर नाय |
देहरे के श्री चन्द्र को, पूजों मन वच काय,
रिद्धि सिद्धि मंगल करें, विघ्न दूर हो जाय ||
जय श्री चन्द्र दया के सागर, देहरे वाली ज्ञान उजागर ।
शांती छवि मूरत अति प्यारी, वेश दिगंबर धारा भारी ।।
नासा पर है दृष्टि तुम्हारी, मोहिनी मूर्ति अति प्यारी ।
देवो के तुम देव कहो, कष्ट भगत के दूर हटाओ ।।
समंतभद्र मुनिवर ने ध्याया, पिंडी फटी दर्शन तुम पाया ।
तुम जग में सर्वज्ञ कहावो, अष्टम तीर्थंकर कहलाओ ।।
महासेन के राज दुलारे, मात सुलक्षणा के तुम प्यारे ।
चन्द्रपुरी नगरी अतिनामी, जनम लिया चन्द्र प्रभु स्वामी ।।
पोष वदी ग्यारस को जन्मे, नरनारी हरषे तब मन में ।
काम क्रोध तृष्णा दुखकारी, त्याग सुखद मुनि दीक्षा धारी ।।
फागुन बदि सप्तमी भाई, केवल ज्ञान हुआ सुखदाई ।
फिर सम्मेद शिखर पर जाके, मोक्ष गए प्रभु आप वहा से ।।
लोभ मोह और छोड़ी माया, तुमने मान कषाय नशाया ।
रागी नहीं नहीं तू द्वेषी, वीतराग तू हित उपदेशी ।।
पंचम काल महा दुःखदाई, धर्मं करम भूले सब भाई ।
अलवर प्रांत में नगर तिजारा, होए जहाँ पर दर्शन प्यारा ।।
उत्तर दिशा में देहरा माहि, वहा आकर प्रभुता प्रगटाई ।
सावन सुदी दशमी शुभनामी, प्रकट भये त्रिभुवन के स्वामी ।।
चिन्ह चन्द्र का लख नर नारी, चंद्रप्रभु की मूर्ति मानी ।
मूर्ति आपकी अति उजियाली, लगता हिरा भी है जाली ।।
अतिशय चन्द्र प्रभु का अति भारी, सुनकर आते यात्री भारी ।
फागुन सुदी सप्तमी अति प्यारी, जुड़ता है मेल अति भारी ।।
कहलाने को तो शशिधर हो, तेज पुंज रवि से बढ़कर हो ।।
नाम तुम्हारा जग में सांचा, ध्यावत भागत भूत पिशाचा ।
राक्षस भूत प्रेत सब भागे, तुम सुमरत भय कोई ना लागे ।।
कीर्ति तुम्हारी है अति भारी, गुण गाते नित नर और नारी ।
जिस पर होती कृपा तुम्हारी, संकट झट कटता है भारी ।।
जो भी जैसी आस लगाता, पूरी उसे तुरंत कर पाता ।
दुखिया दर पर जो आते है, संकट सब खोकर जाते है ।।
खुला सभी को प्रभु द्वार है, चमत्कार को नमस्कार है ।
अँधा भी यदि धयान लगावे, नेत्र उसके शीघ्र खुल जावे ।।
बहरे को सुनने लग जावे, पगले का पागलपन जावे ।
अखंड ज्योति का घी जो लगावे, संकट उसका सब मिट जावे ।।
चरणों की रज अति सुखकारी, दुःख दरिद्र सब नाशन हारी ।
चालीसा जो मन से ध्यावे, पुत्र पौत्र सब सम्पति पावे ।।
पार करो दुखियो की नैया, स्वामी तुम बिन नही कोई खिवैया ।
प्रभु में तुम से कुछ नहीं चाहू, दर्श तिहरा निस दिन पाऊँ ।।
करू वंदना आपकी श्री चन्द्र प्रभु जिनराज ।
जंगल मे मंगल कियो रखियो भक्त की लाज ।।
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