।।गोलाकोट आदिनाथ चालीसा।।
रवीन्द्र कुमार जैन
दोहा
आदि पार्श्व प्रभु पूजकर महावीर मन ध्याय ।
चालीसा जो नित पढे कर्म काट शिव जाय ।।
जय आदीश प्रथम तीर्थकंर,भक्त जनोके तुम हो शंकर
वीतराग मय रूप तिहारा ,भक्त जनो को लागे प्यारा
गोलाकोट पे आप विराजे, दर्शन कर सब संकट भागे
मनवचतन करवंदन कीजे,अपनो जनम सफल कर लीजे
चौथे काल की प्रतिमा प्यारी,सारे जग से लागे न्यारी
इस्वी सन अंठानवे कालो, चोरो ने जब डाको डालो
काटी प्रतिमायें बहू सारी,देखत मे सुन्दर अति प्यारी
हुआ यहाँ पर अतिशय भारी,प्रभु मूरत पर चली न आरी
पकडे चोर स्वयं बतलावे,हाथ लगा वत कर बंध जावे
ईस्वी सन ग्यारह जब आया,पचराई मे रथ चलवाया
चिन्मय सागर शुद्धि कीनी, प्रतिमा देखत सारे जैनी
वापिस प्रतिमा मंदिर आई, वेदी पर फिर न पधराई
गमनछोड मुनि वापिस आये,प्रभु सन्मुखयह वचनसुहाये
समय अभीजो नही हे आया,आसन नया नही बन पाया
प्रतिमा जी फिर अंदर आई, आसन उपर दी पधराई
होवे प्रभु उपर जल धारा, निरखे भक्त अजीब नजारा
जय जयकार करे सब लोगा,देखत पुण्य मिले संजोगा
दर्शन कर सब जन हर्षाये, यात्री बन कर डाकू आये
हाथ बांध रक्षक के डारे,एक कक्ष मे सबको पारे
राम लखन सम पारस प्यारे,दोनो को ले गये अंधियारे
खबर होत ही सब जन सारे,दौडत भागे उठ भुनसारे
विनयभैया जी संग मे आये,यहाँ वहाँ फिर फोन लगाये
नयागाँव इक गाँव वखाना,जिला माधोपुर होय ठिकाना
पुलिस मूर्ति जब्त जो कीना,सुखद खबर फिर पाय नवीना
ईस्वी सन तेरह शुभ आई, जीर्णोद्धार क्षेत्र हो जाई
आये सुधा सिन्धु मुनिराजा,नव आसन प्रभु दिया विराजा
श्रेष्ठी नन्हेलाल सु जानो,पुण्य रूप फल कियो फरमानो
नव मन्दिर निर्माण करावे, बहु भारी बह पुण्य कमावे
मन्दिर चौबीसी जिनराजा,निर्मित होवें कह मुनिराजा
नंदीश्वर मंदिर भी होवे, समवशरण की महिमा शोभे
जीर्णोद्धार मे सब जन आये,शासन से भी सुविधा पाये
चौरासी से सब जन भाई,करते पूजन नित सुख दाई
प्रतिदिन होवे शांति धारा,पा मन वांछित पुण्य अपारा
प्रभु मूरत सुन्दर अतिप्यारी,मनहर छवि देखत नरनारी
भावसहित जो दर्शन करता,कर्म निशादनिकाक्षित हरता
गोल पहाडी हे सुख कारी, पर कोटा शोभे अति भारी
मध्य भाग मे मन्दिर सोहे, सुर नर किन्नर के मन मोहे
नीचे सरवर हे इक सुन्दर, मन हरता हे दृश्य मनोहर
हाथ जोड रवि शीश नवावे,नित प्रति आदि प्रभु ध्यावे
मिले सदा प्रभु शरण तिहारी , पा जाउ मुक्ति सुखकारी
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